रक्षाबंधन की पौराणिक तथा ऐतिहासिक कहानियां एवं रक्षाबंधन मंत्र

रक्षाबंधन की पौराणिक तथा ऐतिहासिक कहानियाँ, जिन्हें हमें जानना चाहिये।

हिंदू समाज में रक्षाबंधन/ राखी का विशेष महत्व रहा है और रहेगा। इस भाई बहन के उत्सव पूरा परिवार हर्षोल्लास के साथ मनाता है। इस त्यौहार से जुड़ी हुई कई  रौचक पौराणिक कहानियां एवं साथ में ही ऐतिहासिक कहानियां विद्यमान है, जिन्हें हमें जानना चाहिए।

पौराणिक कहानियां

1. राजा महाबली एवं वामन अवतार विष्णु भगवान की कहानी

रक्षाबंधन के संबंध में वामन अवतार भगवान विष्णु की कथा अत्यंत ही प्रसिद्ध है।असुर राजा महाबली ने अपने पराक्रम से समस्त लोक पर विजय प्राप्त कर कर ली थी।  असुरराज बलि से इंद्र भगवान अत्यंत डर गए थे और उन्होंने भगवान विष्णु की सहायता ली। महाराजा बली अत्यंत ही दानवीर थे। उनकी दानवीरता के बारे में सभी जानते थे। इसीलिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण करके महाराजा महाबली से भिक्षा की मांग की।  बलि ने उन्हें कुछ भी मांगने के लिए कहा। इस पर वामन अवतार भगवान विष्णु ने तीन कदम भूमि की मांग की। जिसे राजा बलि ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। इसके पश्चात भगवान श्री विष्णु ने विराट रूप धारण किया तथा तो कदमों में आकाश तथा पाताल नाप लिया अब तीसरे कदम के लिए भगवान विष्णु ने बलि से पूछा तो वह राजा बलि ने अपने सिर को आगे कर दिया।  भगवान विष्णु ने अपना पेर उनके शीर्ष पर रख दिया। जिससे वह रसातल अथवा पाताल लोक चले गए। उनकी दानवीरता से भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने वरदान मांगने के लिए कहा। राजा बलि ने भगवान विष्णु से कहा कि आप वरदान के रूप में मेरे साथ ही रहो। इसके पश्चात भगवान विष्णु और राजा बलि के साथ ही रहने लग गए। उधर माता लक्ष्मी अत्यंत विचलित हुई जब उन्हें यह पता चला। लक्ष्मी जी ने अलग रूप धारण करके राजा बलि के रक्षा सूत्र बांधा। तब राजा बलि ने कहा कि मेरे पास देने के लिए कुछ नहीं है। इस पर लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को मांग लिया। इस प्रकार पुनः भगवान विष्णु लक्ष्मी जी के पास चले गए। किंतु उन्होंने वर्ष में 4 महीने राजा बलि के साथ ही रहने का वचन दिया। 4 महीने राजा बलि के रहने को ही देवशयन कहते हैं । तभी से रक्षा सूत्र की परंपरा पड़ी है।

2.भगवान श्री कृष्ण एवं पांचाली द्रोपदी की कहानी

कहते हैं, महाभारत के युद्ध के समय भगवान श्री कृष्ण द्वारा शिशुपाल के वध के समय अंगुली क्षतिग्रस्त हो गई थी। उसे खून टपक रहा था जिससे उनकी बहन मानी जाने वाली द्रोपदी ने अपनी साड़ी का वस्त्र फाड़ कर उनकी अंगुली पर लपेटा था। उसी के परिणाम स्वरुप भगवान श्री कृष्ण ने भविष्य में द्रोपदी की कौरवों की सभा मे चीर हरण से रक्षा की थी। ऐसा माना जाता है कि तभी से रक्षाबंधन की परंपरा पड़ी है।

3. भगवान इंद्र और उनकी पत्नी शची की कहानी

राजा इंद्र काफी समय तक युद्ध करने के बावजूद असुरों को हरा नहीं सके। इसी कारण देवता चिंतित थे। इस पर उनके गुरु ने उनकी पत्नी शची को एक मंत्र के साथ रक्षा सूत्र बांधने को कहा। इस पर इंद्र की पत्नी शची ने अपने पति के मंत्रोचार के साथ रक्षा सूत्र बांधा और उसके पश्चात उनकी असुरों से विजय हो गई। यह श्रावण शुक्ल की पूर्णिमा को होने की वजह से इस दिन रक्षाबंधन मनाया जाता है तथा तथा उसी मंत्र का उच्चारण में इस्तेमाल किया जाता है। जो निम्न प्रकार है :-
येन बद्धो बलीराजा दानवेंद्रो महाबलः।
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।।
"हे,रक्षा सूत्र , जिस प्रकार दानव राजा महाबली को बांधा था उसी प्रकार मैं तुम्हें बांधता हूं।  तुम मेरी रक्षा करना। कभी भी चलायमान  मत होना अर्थात अपने वचन पर स्थिर रहना।"

रक्षाबंधन


4. जैन ऋषि विष्णुकुमार की कहानी

जैन धर्म के अनुसार ऋषि विष्णु कुमार मुनि ने 700 मुनियों की रक्षा की थी।  पझ नामक राजा के 4 मंत्रियों में से एक मंत्री बली ने अपने स्थान पर भ्रमण करने आए 700 जैन मुनियों के यज्ञ हवन आदि में विघ्न डालने की योजना बनाई तथा साथ ही यज्ञ वेदी में उन मुनियों को मारने की योजना बनाई।  इस पर मुनि विष्णु कुमार याचक का रूप धारण करके राजा पझ के मंत्री बलि के पास गए। उस वक्त खुश होकर उसने उन्हें कुछ भी मांगने के लिए कहा। जिस पर विष्णु कुमार ने 3 कदम भूमि की मांग की। जिसे मंत्री बली ने स्वीकार कर लिया। विष्णु कुमार मुनि ने पहला कदम मेरु पर्वत और दूसरे कदम मानुषोत्तर पर्वत पर रखकर संपूर्ण विश्व माप  दिया तथा तीसरा कदम मंत्री बलि की पीठ पर रख दिया। इस प्रकार उनके राजा को यह बात पता चली तो उसने माफी मांगी। इसी के परिणाम स्वरूप जैन समाज में श्रावण सुदी पूर्णिमा को रक्षाबंधन पर्व मनाया जाता है। 

ऐतिहासिक कहानियां

5. बादशाह हुमायूँ तथा रानी कर्मावती की कहानी

बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया तो राणा सांगा की विधवा  पत्नी कर्मावती ने हुमायूँ को राखी भेज कर चितोड़ की रक्षा करने हेतु कहा और बादशाह हुमायूँ ने उक्त राखी के वचन पालनमें  बहादुरशाह से संघर्ष किया तथा चित्तौड़ पर कभी भी आक्रमण नहीं किया। इस प्रकार चित्तौड़ की रक्षा का वचन एक रक्षासूत्र से लिया गया था।

6. सिकंदर और राजा पोरस की कहानी

कहते हैं कि जब सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया तो राजा पुरु अथवा पोरस ने उस को बंदी बना लिया था और उससे पूछा कि तुम्हारे साथ क्या किया जाए तो सिकंदर का जवाब था कि वही है जो एक राजा दूसरे राजा साथ करता है। इसी दौरान सिकंदर की पत्नी ने राजा पोरस को राखी बांधी थी। जिसमे सिकंदर को न मारने का वचन लिया था। उसी वचन में राजा पोरस ने सिकंदर को जीवनदान दिया और बाद में सिकंदर तथा मैं अपने रक्षा सूत्रों की अदला-बदली की थी। इसीलिए भविष्य में सिकंदर ने भी पोरस को जीवनदान दिया था।

7. रवीन्द्रनाथ टेगोर की कहानी

बंग-भंग या बंगाल के विभाजन के विरोध में राष्ट्र कवि रविद्र नाथ टैगोर ने शंखनाद किया था। उन्होंने धार्मिक रीति-रिवाजों  के माध्यम से लोगों को संगठित करने का प्रयास किया था। इसीलिए उन्होंने समाज के सभी वर्गों को आपस में एक दूसरे की रक्षा हेतु रक्षासूत्र बांधने हेतु प्रेरित किया । उनकी कविताओं में आव्हान किया गया कि-
" सप्त कोटि लोकेर करुण क्रंदन,
  सुनेना सुनील कर्जन दुर्जन,
  ताइ निते प्रतिशोध मनेर मतन करील,
  आमि स्वजने राखी बंधन।"
इस प्रकार राखी भी जनजागरण का केंद्रबिंदु बना।
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Happy Rakshabandhan 2021 ........


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