पेड़ कटाई के कानूनी नियम तथा विभिन्न अधिनियमों में गठित अपराध एवं दंड
दोस्तों, जैसे जैसे औद्योगिक क्रांति आई है , उसके साथ- साथ ही पर्यावरण प्रदूषण में अत्यंत गति से गुजरती हुई है। इन्ही कारणों से सभी का ध्यान वन संरक्षण के प्रति आया है। यही कारण है कि भारत सरकार ने भारत के संविधान के मौलिक कर्तव्य वन एवं वन्य जीव की सुरक्षा करने का कर्तव्य "वन एवं वन्य जीवों की रक्षा का कर्तव्य" के अनुरूप कई अधिनियम पारित किये है। इसी के अनुरूप केंद्र एवं राज्य सरकारों ने भी कई अधिनियम हरे पेड़ों की रक्षा हेतु निर्मित किये है। पेड़ों की कटाई को अपराध घोषित किया है एवं इसके लिए दंड का प्रावधान किया है।
विषयसामग्री
- पेड़ों की रक्षा हेतु संविधान का प्रावधान
- भारतीय वन अधिनियम, 1927 के प्रावधान
- राजस्थान काश्तकारी अधिनियम, 1956 के प्रावधान
- भारतीय दंड संहिता के प्रावधान
- अन्य सम्बंधित अधिनियम
वन या पेड़ों की कटाई के सम्बन्ध में संविधान के प्रावधान
भारत के संविधान के अनुच्छेद में "वन एवं वन्य जीवों की रक्षा" को मौलिक कर्तव्य बताया गया है। मौलिक कर्तव्य बाध्यकारी तो नहीं है। किन्तु उनके पालन हेतु सरकार समय-समय पर विभिन्न अधिनियम पारित कर उसे बाध्यकारी स्वरूप प्रदान करती है । इस प्रकार भारत के हर एक नागरिक का कर्तव्य है कि वह पेड़-पौधों एवं वन्य जीवों की सरंक्षा करे।
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भारतीय वन अधिनियम , 1927
भारतीय वन अधिनियम, 1927 वनों के सरंक्षण हेतु महत्वपूर्ण अधिनियम है। जिसमे किसी क्षेत्र में सरंक्षित वन क्षेत्र घोषित करें की शक्ति भी प्राप्त है, इसी अधिनियम की विभिन्न धाराओं में वन सम्पति को नुकसान पहुंचने या पेड़ काटने हेतु विभिन्न धाराओं में दण्डों का प्रावधान किया गया है, जिनमे मुख्य धाराएं निम्न प्रकार से हैं :-
अधिनियम की धारा 26 एवं धारा 33 में पेड़ों को नुकसान पहुंचाने पर अर्थात पेड़ को काटने, छाल उतारने , पत्तियां आदि तोड़ने, आग लगाने या पशुओं के माध्यम से नुकसान कारित करने या अन्य किसी प्रकार से नुकसान पहुँचाने पर ऐसे कारावास से जो छह माह की अवधी तक हो सकेगा या 500 रूपये जुर्माना अथवा दोनों से दण्डित किया जावेगा। उक्त अधिनियम के प्रावधान वनों , ग्राम वनों या सरंक्षित वनों आदि पर लागु होते है .
अधिनियम की धारा 64 में व्यवस्था की गई है कि जो एक माह या अधिक की अवधी से दण्डित वन विषयक अपराध को कारित करता है तो वन अधिकारी या पुलिस अधिकारी बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के नियमानुसार अपराधी को गिरफ्दार कर सकेगा।
उक्त अधिनियम में वन लकड़ी के अभिवहन एवं शुल्क से सम्बंधित प्रावधान इंडियन फारेस्ट एक्ट, 1927 धारा 41 में दिए गए है तथा इसी अधिनियम के अनुरूप विभिन्न राज्यों में विभिन्न अधिनियम को अधिनियमित किया गया है
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भारतीय वन अधिनियम, 1927 BARE ACT
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राजस्थान वन अधिनियम, 1953 संशोधन 2014
राजस्थान में भारतीय वन अधिनियम, 1927 के अनुरूप राजस्थान वन अधिनियम, 1953 अधिनियमित किया गया है। इस अधिनियम में अधिनियम के अनुसार घोषित वन की परिभाषा में आने वाली वन सम्पति को नुकसान करने पर धारा 26 (1) के अनुसार आरक्षित वन सम्पति को नुकसान पहुंचायेगा, वह छह माह कारावास या 500 रूपये जुर्माना अथवा दोनों से दण्डित किया जावेगा। धारा 26 (1 )क के अनुसार धारा 5 में प्रतिषिद्ध कटाई करने, आरक्षित वनों में आग लगाने आदि अपराध करने पर उक्त नुकसान के प्रतिकर के अतिरिक्त छह माह तक के कारावास या पच्चीस हजार तक जुर्माना दोनों से दण्डित किया जावेगा। इसी प्रकार के प्रावधान धारा 33 में दिए गए हैं।
राजस्थान वन अधिनियम, 1953 BARE ACT
राजस्थान वन अधिनियम, 1953 पीडीऍफ़ डाउनलोड
राजस्थान वन अधिनियम, 1953 संशोधन डाउनलोड
अन्य राज्यों के अधिनियम :-
दिल्ली में DELHI PRESERVATION OF TREES ACT, 1994
मध्यप्रदेश में वन संरक्षण अधिनियम, 2002
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राजस्थान काश्तकारी अधिनियम, 1955 के प्रावधान
अधिनियम की धारा 84 के अंतर्गत एक काश्तकार को अपनी काश्त में पेड़ कटाई हेतु अनुमति का प्रावधान किया गया है।
सिलिंग सीमा के अंर्तगत तहसीलदार को धारा 84 के अधीन तथा सीलिंग सीमा से ज्यादा भुमी हेतु उपखण्ड मजिस्ट्रेट को पेड़ काटने की अनुमति देने की शक्ति प्रदान की गई है। किन्तु उक्त अनुमति हेतु आवेदन करना होता है तथा एक पेड़ के स्थान पर 10 पेड़ लगाने का शपथ पत्र सलंग्न करना अनिवार्य होता है। इसके अतिरिक्त प्रति पेड़ या हेक्टेयर के हिसाब से राशि का भुगतान राष्ट्रीय बचत पत्र या किसान बॉण्ड के रूप में किया जाता है।
बिना अनुमति घरेलू या कृषि भूमि पर पेड़ काटने का दंड:- बिना अनुमति पेड़ काटने पर जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
भारतीय दंड संहिता, 1860 के अंतर्गत किसी अन्य की संपत्ति में पेड़ काटने का दंड
किसी अन्य के कब्जे के घरेलू भूमि या खेती की भूमि पर किसी व्यक्ति द्वारा पेड़ काट कर ले जाया जाता है या किसी अन्य व्यक्ति की प्रेरणा पर यह कार्य कर दिया जाता है तो यह भारतीय दंड संहिता 1807 के अंतर्गत अपराध की श्रेणी में आता है तथा निम्न धाराओं के अंतर्गत अपराधी को दंडित किया जा सकता है।
धारा 379- चोरी हेतु दंड- अधिकतम 3 वर्ष का कारावास या जुर्माना अथवा दोनों।
धारा 447 -किसी अन्य के कब्जे की सम्पति में नुकसान करने के आशय से प्रवेश करने हेतु दंड (आपराधिक अतिचार) दंड - तीन माह तक कारावास या जुर्माना अथवा दोनों।
धारा 120 बी - आपराधिक षडयंत्र हेतु दंड- 6 माह तक कारावास या जुर्माना अथवा दोनों।
भारतीय दंड संहिता, 1872 हिंदी पीडीऍफ़ डाउनलोड
वन, वन्य जीव तथा पर्यावरण सरंक्षण हेतु महत्वपूर्ण अधिनियम
निम्नलिखित अधिनियम वन तथा वन्य जीव एवं पर्यावरण संरक्षण हेतु महत्वपूर्ण हैं :-
- पर्यावरण सरंक्षण अधिनियम, 1984
- वन्यजीव सरंक्षण अधिनियम, 1972
- वायु प्रदुषण तथा निवारण अधिनियम, 1981
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