घरेलू हिंसा से महिलाओं का सरंक्षण के प्रावधान

घरेलू हिंसा से महिलाओं का सरंक्षण के प्रावधान  

घरेलू  हिंसा वर्तमान में सामाजिक समस्या  के तोर पर सबसे ऊपर की पंक्ति में है। भारत में घरेलु हिंसा (domestic violence in india ) एक जाना पहचाना नाम है इसमें शारीरिक हिंसा, मानसिक हिंसा भी आती है। यह विश्वस्तर की समस्या है। domestic violence meaning in hindi घरेलू हिंसा के नाम से जाना जाता है। 

domestic violence in india

 विषय सामग्री 

  1. घरेलू हिंसा क्या है ?
  2. घरेलू हिंसा अधिनियम क्या है ?
  3. घरेलू हिंसा में महिलाओं को प्राप्त अनुतोष 
  4. घरेलू हिंसा कंप्लेंट कैसे दर्ज करवाएं ?
  5. पति के साथ घरेलू हिंसा होने पर प्रावधान 
  6. झूठा प्रकरण दर्ज होने पर प्रावधान 
  7. राष्ट्रीय महिला आयोग एवं राज्य महिला आयोग 

 घरेलू हिंसा (Domestic Violence) क्या है ?

जैसा कि नाम से प्रतीत होता है घरेलू हिंसा से तात्पर्य घर के भीतर होने वाली किसी भी प्रकार की हिंसा से है।  

घरेलू हिंसा प्रकरण कैसे फाइल करें ?

घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 की धारा 3 के अनुसार 

''(3)  घरेलू हिंसा की परिभाषा ( domestic violence definition )इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए प्रत्ययथी का कोई कार्य, लोप या  या कुछ करना या आचरण, घरेलू हिंसा गठित करेगा, यदि वह,-

(). व्यथित व्यक्ति के स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन या अंग या चाहे उसकी मानसिक या शारीरिक भलाई की हानि करता है या उसे कोई क्षति पहुंचाता है या उसे संकटापन्न करता है या उसकी ऐसा करने की प्रवृत्ति है और जिसके अंतर्गत शारीरिक दुरुपयोग, लैंगिक दुरुपयोग, मौखिक और भावनात्मक दुरुपयोग और आर्थिक दुरुपयोग कार्य करना भी है या

().किसी दहेज या अन्य संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति के लिए किसी विधि विरुद्ध मांग की पूर्ति के लिए उसे या उससे संबंधित किसी अन्य व्यक्ति को प्रपीड़ित  करने की दृष्टि से व्यथित व्यक्ति का उत्पीड़न करता है या उसकी अपहानि करता है या उसे क्षति पहुंचाता है या संकटापन्न करता है या

( )खंड   या खंड   में वर्णित किसी आचरण द्वारा व्यथित व्यक्ति या उससे संबंधित किसी व्यक्ति पर धमकी का प्रभाव रखता है या

()व्यथित व्यक्ति को अन्यथा क्षति पहुंचाता है या उत्पीड़न कारित  करता है चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक '' 

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 घरेलु हिंसा अधिनियम क्या है ?

किसी भी प्रकार से महिलाओं में परिवार के भीतर होने वाली हिंसा से सरंक्षण एवं अन्य सहायक उपाय हेतु एक  अधिनियम  को अधिनियमित किया गया है , जिसे  घरेलू  हिंसा से महिलाओं का सरंक्षण अधिनियम, 2005 ( The Protection of Women From Domestic Violence Act, 2005)  के नाम से जाना जाता है।  साधारण भाषा में इसे रेलू हिंसा अधिनियम ( Domestic Violence Act, 2005 / DV act ) के नाम से जाना जाता है। यह अधिनियम घर में महिलाओं  को सरंक्षण प्रदान करता है। उक्त अधिनियम के अधीन वृद्ध माता-पिता, बालक, लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली स्त्री के साथ साथ गे, लेस्बियन इत्यादि को भी सरंक्षण प्रदान किया गया है। 

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The Protection of Women From Domestic Violence Act, 2005) pdf download in hindi

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 घरेलू हिंसा अधिनियम में प्राप्त महिलाओं को अनुतोष

यह अधिनियम महिलाओं को काफी अधिकार प्रदान करता है, प्रायः उक्त अधिकारों की जानकारी महिलाओं को नहीं है, जानकारी के अभाव में ही उक्त अधिनियम का फायदा नहीं उठा पा रही है।  अधिनियम में प्राप्त मुख्य अनुतोष :-

DV ACT की  धारा 17 के अनुसार महिला को अपनी साझी गृहस्थी में रहने का अधिकार प्रदान किया गया है। एक महिला को बिना किसी कानूनी प्रावधान के साझी गृहस्थी से बेदखल नहीं किया जा सकता है।

धारा 18 सरंक्षण आदेश : व्यथित व्यक्ति को सभी प्रकार से सरंक्षण के आदेश प्रदान किये जा सकते है जैसे कि हिंसा करने से पाबंद किया जाना, किसी भी प्रकार संचार इत्यादि के साधनो से सम्पर्क कर परेशान किया जाना,  उसके कार्यस्थान पर प्रवेश करने से निषेध किया जाना,  घरेलू हिंसा से पीड़ित को सहायता देने वाले को सरंक्षण, बैंक या स्त्रीधन इत्यादि का सरंक्षण, प्रत्यर्थी को साझी गृहस्थी का परित्याग करने, 

 धारा 19  निवास आदेश :- न्यायालय साझी गृहस्थी में निवास हेतु सरंक्षण प्रदान करने हेतु निवास से बेकब्जा करने से सरंक्षण, प्रत्यर्थी को साझी गृहस्थी से पृथक निवास करने, निवास गृह का रास्ता अवरूद्ध करने, सम्पति को अंतरित करने या गिरवी इत्यादि रखने से रोकने के साथ ही यदि आवश्यक हो तो पीड़ित महिला को पृथक किराये का आवास उपलब्ध करवाने के आदेश प्रदान कर सकता है।  

 धारा 20   धनीय अनुतोष : उक्त धारा के अधीन न्यायालय आय स्त्रोत की हानि, चिकित्सा व्यय, सम्पति के किसी नुकसान के साथ सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अतिरिक्त बालकों के भरणपोषण की राशि का आदेश प्रदान कर सकता है। यह राशि एकमुश्त या मासिक हो सकती है। 

 धारा 21  अभिरक्षा का आदेश : इस अधिनियम के अधीन बालकों की अभिरक्षा का आदेश प्रदान किया जा सकता है। 

 धारा 22  प्रतिकर का आदेश : इस अधिनियम के अधीन किसी भी प्रकार की क्षति जिसमे मानसिक एवं शारीरिक यातना शामिल है, के लिए प्रतिकर देने के आदेश प्रदान किये जा सकते है। 

 धारा 23  एकतरफा या अंतरिम आदेश : न्यायालय यदि उचित समझता है तो किसी मामले की परिस्थितियों को देखते हुए एकतरफा आदेश प्रदान कर सकता है। ऊपर दी गई सभी धाराओं के अधीन प्रार्थी के शपथपत्र के आधार पर उचित अंतरिम आदेश प्रदान कर सकता है। 

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 घरेलू हिंसा प्रकरण कैसे फाइल करें ?

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सामान्यतः घरेलु हिंसा प्रकरण पति के प्रति (domestic violence case against husband) ही फाइल किया जाए आवश्यक नहीं है इसके अन्य पक्षकार भी हो सकते है जिनमे घरेलू हिंसा को प्रेरित करने वाले व्यक्ति भी शामिल हैं। 
घरेलु हिंसा प्रकरण  domestic violence complaint न्यायालय में फ़ाइल किया जाता है। इसके लिए योग्य अधिवक्ता की आवश्यकता होती है। सम्पूर्ण प्रकरण के समस्त तथ्यों का उल्लेख करते हुए domestic violence complaint format / प्रार्थनापत्र में डिवी एक्ट की धारा 18, धारा 19, धारा 20,  धारा 21,धारा 22 अथवा धारा 23 या सभी धाराओं में जो भी अनुतोष प्रार्थी चाहता है उनका स्पष्टतः उल्लेख करना होता है।  इसके साथ ही माननीय उच्चतम उच्चतम न्यायालय की गाइडलाइन के अनुसार शपथपत्र पत्र भी देना आवश्यक होता है, उक्त शपथपत्र में महत्वपूर्ण जानकारियां प्रदान की जाती है। उक्त प्रक्रिया में न्यायालय प्रार्थी को परामर्श हेतु महिला कल्याण अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत होकर तथ्य प्रस्तुत करने का आदेश भी प्रदान करता है तथा उक्त महिला कल्याण अधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर उचित आदेश प्रदान करता है। 

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 पति के साथ  घरेलू हिंसा के विरुद्ध उपचार 

देखा जाए तो उक्त अधिनियम स्त्रियों एवं बालकों की तो घरेलू हिंसा से सरंक्षण प्रदान करता है किन्तु  पति को उक्त अधिनियम में उक्त प्रकार का सरंक्षण प्राप्त नहीं है किन्तु जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के एक प्रकरण में यह निर्णीत किया गया है कि पति भी डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट के अंतरगर्त आवेदन कर सकता है तथा अनुतोष प्राप्त कर सकता है।  अब प्रश्न यह उठता है कि पति के पास घरेलू हिंसा से सरंक्षण हेतु क्या प्रावधान उपलब्ध है।  पति के विरुद्ध यदि किसी प्रकार की घरेलू हिंसा पत्नी द्वारा की जाती है तो वह भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के अंतरगर्त घटेलू हिंसा की प्रथम सुचना रिपोर्ट दर्ज /  DOMESTIC VIOLENCE FIR दर्ज करवा सकता है। 

 घरेलू हिंसा के झूठे परिवाद में पति को प्राप्त अधिकार 

यदि पत्नी द्वारा दर्ज करवाई गई डोमेस्टिक वायलेंस कंप्लेंट अथवा अन्य कंप्लेंट झूठी पाई जाती है तो पति अपनी पत्नी के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता के अधीन विभिन्न धाराओं में एफआईआर दर्ज करवा सकता है, जो निम्नानुसार है :-
  • भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 120 B आपराधिक षड़यंत्र,  धारा 191 गलत साक्ष्य प्रस्तुत करना, धारा 197 गलत हस्ताक्षर करना, धारा 471 जाली दस्तावेज प्रस्तुत करना, धारा 497 व्यभिचार के लिए दंड, धारा 504 मानहानि के लिए दंड, धारा 504 शांति भंग के आशय से अपमान करना, धारा 506 आपराधिक धमकी के लिए दंड इत्यादि मामले के अनुसार। 
  • भारतीय प्रक्रिया संहिता, 1973  के धारा 227 के उपबंधों के अधीन झूठा आवेदन ख़ारिज करने हेतु परिवाद 
  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1860 के धारा 9 के अधीन झूठे दावे के फलस्वरूप हुई हानि के लिए क्षतिपूर्ति दावा किया जा सकता है।  
एससी एसटी एक्ट 1989 संशोधित प्रावधान, दंड  

 राष्ट्रीय महिला आयोग एवं राज्य महिला आयोग 


महिला आयोग कंप्लेंट ऑनलाइन लिंक 

घरेलू हिंसा से महिलाओं के सरंक्षण के सम्बन्ध में राष्ट्रीय महिला आयोग का गठन किया गया है।  राज्य स्तर पर राज्य महिला आयोग की स्थापना की गई है। महिला आयोग महिलाओं पर होने वाले घरेलू उत्पीड़न को रोकने के सम्बन्ध में कारगर रूप से कार्य करती है। 

राष्ट्रीय महिला आयोग की वेबसाइट पर महिलायें घरेलू हिंसा के प्रति  अपनी शिकायत ऑनलाइन दर्ज करवा सकती है।   महिला आयोग में शिकायत दर्ज करवाने हेतु निचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :-

Click Here

राजस्थान में राजस्थान महिला आयोग ( Rajasthn State Commission for Women ) में शिकायत दर्ज करवाने हेतु ऑफिसियल लिंक 

Click Here

राष्ट्रीय महिला आयोग ( National Commission for Women )ऑफिसियल वेबसाइट 

http://ncwapps.nic.in/

राजस्थान महिला आयोग ऑफिसियल वेबसाइट 

https://rscw.rajasthan.gov.in/

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