498 A क्या है ? प्रावधान और जमानत

 पति या नातेदार द्वारा किसी स्त्री के प्रति क्रूरता 

वर्तमान में स्त्रियों को सरंक्षण प्रदान करने हेतु अनेक कानून उपबंधित है।  इन्ही में से एक भारतीय दंड संहिता, 1860  की धारा 498 ए है। यह धारा किसी स्त्री पर उसके पति या किसी नातेदार द्वारा उसके प्रति क्रूरतापूर्ण व्यवहार करने पर दंड का प्रावधान करती है। उक्त धारा के प्रावधानों को प्रायः दहेज़ का दावा (DOWRY CASE)  का पर्याय माना जाता है जबकि उक्त धारा में कहीं भी दहेज़ या दहेज़ के लिए क्रूरता शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है। यह धारा केवल विवाहित स्त्रियों को सरंक्षण प्रदान करती है।  यह धारा अविवाहित या रखैल इत्यादि का सरंक्षण नहीं प्रदान करती है। इस धारा के अधीन FIR, प्रावधान घरेलू हिंसा के दावे के साथ-साथ हो सकती हैं। 
498 A  क्या है ?   प्रावधान और जमानत

 विषय सामग्री 

  1. 498 A क्या है ?
  2. 498 A / दहेज़ केस के नकारात्मक पक्ष
  3. 498 A में केस दर्ज कैसे करवाए / प्रक्रिया 
  4. क्या 498 A में गिरफ्तारी होना आवश्यक है ?
  5. धारा 498A IPC PUNISHMENT

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498 A  क्या है ? 498A IPC IN HINDI

भारतीय दंड संहिता, 1860 के अध्याय 21 ए में उपबंधित धारा 498 A निम्न प्रकार से है :-
" 498 ए. किसी स्त्री के पति या पति के नातेदार द्वारा उसके प्रति क्रूरता करना- जो कोई किसी स्त्री का पति या पति का नातेदार होते हुए, ऐसी स्त्री के प्रति क्रूरता करेगा, वह कारावास से जिसकी अवधि 3 वर्ष तक की हो सकेगी दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा। 
स्पष्टीकरण :  इस धारा के प्रयोजनों के लिए क्रूरता से निम्नलिखित अभिप्रेत है :-
(क). जानबूझकर किया गया कोई आचरण, जो ऐसी प्रकृति का है, जिससे उस स्त्री को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित करने की या उस स्त्री के जीवन, अंग या स्वास्थ्य की (चाहे मानसिक हो या शारीरिक) गंभीर क्षति या खतरा कारित करने के लिए उसे करने की संभावना है या:,
(ख ). किसी स्त्री को तंग करना, जहां उसे या उसे संबंधित किसी व्यक्ति को किसी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति के लिए किसी विधि विरुद्ध मांग को पूरी करने के लिए पर पीड़ित करने की दृष्टि से या उसके अथवा उससे संबंधित किसी व्यक्ति के ऐसी मांग पूरी करने में असफल रहने के कारण इस प्रकार तंग किया जा रहा है। "

इस प्रकार उक्त धारा में पति अथवा उसके नातेदार, जिनमे उसके भाई, बहिन, माता या पिता इत्यादि के द्वारा स्त्री से की गई सभी प्रकार की क्रूरता आती है, जो मानसिक एवं शारीरिक दोनों हो सकती है। इस प्रकार से मारपीट के साथ साथ ही गाली या अन्य प्रकार से मानसिक रूप से प्रताड़ित करना भी क्रूरता की श्रेणी में आता है।  साथ ही उक्त धारा में किसी अवैध मांग, जो की धन से सम्बंधित होती है, को पूरी करने हेतु स्त्री को प्रताड़ित करना भी शामिल है।  उक्त  खंड के शामिल होने की वजह से ही यह धारा दहेज़ की मांग के अनुतोष के रूप में देखी जाती है। क्योकि कई बार दहेज की मांग स्त्री को आत्महत्या तक प्रेरित कर सकती है। हालाँकि विशिष्ट रूप से दहेज़ से सम्बंधित प्रकरण दहेज़ उत्पीड़न अधिनियम, 1961 है। 
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498 A  / दहेज़ केस के नकारात्मक पक्ष 

उक्त धारा में स्त्री को क्रूरता के प्रति पुलिस प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाने का अधिकार दिया गया है।  प्रायः यह देखा गया है कि वैवाहिक विवादों में उक्त धारा को एक हथियार के रूप में काम में लिया जाता है, साथ ही पति के सभी नातेदार को उक्त विवाद की एफआईआर में सम्मिलित करते हुए प्राथमिकी दर्ज करवाई जाती है, जैसे की स्त्री की विवाहिता ननद, देवर , सास या ससुर इत्यादि। जबकि इन सबका चाहे उक्त वैवाहिक विवाद से किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना ना हो। चूँकि उक्त प्रकरण आपराधिक प्रकरण होने की वजह से उक्त अभियुक्तों के पुलिस तथा न्यायालय के काफी चक्कर लगाने पड़ते हैं। देखा जाए तो यह उक्त धारा के प्रावधानों का सरासर उल्लंघन है। साथ ही उक्त वादों में पत्नी द्वारा FIR दर्ज करवाने के पश्चात भारतीय साक्ष्य अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार पति या नातेदार ने किसी भी प्रकार से क्रूरता नहीं की है, को साबित करने का भार (BURDEN OF PROOF) पति या उक्त नातेदार की ही होता है। जबकि अन्य प्रकार के वादों में अभियुक्त को निर्दोष मानकर साबित करने का भार अभियोग दर्ज करवाने वाले पर होता है। 

498 A में केस दर्ज कैसे करवाए / प्रक्रिया 

किसी  विवाहिता स्त्री के साथ उसके ससुराल पक्ष के द्वारा किसी प्रकार की क्रूरता की जाती है तो सर्वप्रथम सम्बंधित क्षेत्राधिकार रखने वाले पुलिस थाने में प्राथमिकी (FIR) दर्ज करवानी होती है। उक्त रिपोर्ट स्त्री के साथ गठित हुए सम्पूर्ण घटनाक्रम को संक्षिप्त रूप में लेखबद्ध किया जाना आवश्यक है, उक्त 498A FIR  दर्ज करवाने हेतु योग्य अधिवक्ता की सलाह अवश्य लेनी चाहिए।  स्त्री की रिपोर्ट के आधार पर पुलिस को FIR दर्ज कर जांच करने के पश्चात 24 घंटे की अवधी में न्यायालय के समक्ष FIR प्रस्तुत की जाती है। जहाँ पर अभियुक्त जमानत का आवेदन कर सकते है।  न्यायालय सम्पूर्ण प्रकरण सुनने के पश्चात कुछ या सभी को जमानत का लाभ दे सकती है। कुछ समय पश्चात पुलिस अपनी सम्पूर्ण जाँच रिपोर्ट या चालान न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करती है। उक्त चालान में कुछ नामजद अभियुक्तों के नाम हटा भी दिए जा सकते है यह पुलिस की जाँच पर निर्भर करता है। प्रायः देखा गया है कि पुलिस चालान में पति को छोड़कर सभी नाम हटा दिए जाते हैं। 

क्या 498 A में गिरफ्तारी होना आवश्यक है ?

चूँकि यह अजमानतीय तथा संज्ञेय अपराध है अतः इसमें पुलिस को अभियुक्त को गिरफ्तार कर न्यायालय के समक्ष पेश करना आवश्यक है। किसी को गिरफ्तार करने से पूर्व आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 41 की गाइड लाइन को फॉलो करना अनिवार्य है। साथ ही  कुछ उच्चतम न्यायालय एवं विभिन्न गाइडलाइन है, जिनका पालन करना पुलिस को आवश्यक है। उच्चतम न्यायालय तथा विभिन्न उच्च न्यायालयों ने इस धारा के दुरूपयोग को देखते हुए तथा पारिवारिक विवाद मानते हुए उक्त गाइडलाइन तय की है, जिनके आधार पर अभियुक्तों को गिरफ्तार करने से पूर्व परिवार कल्याण समिति के समक्ष समझौते आदि के प्रयास करने हेतु कुछ समय दिया जाता है। जैसे की इलाहाबाद न्यायालय ने इस कूलिंग पीरियड की अवधी 2 माह तय की है।

धारा 498A IPC  PUNISHMENT 

धारा 498A  में निर्णीत दोषी को अधिकतम 3 वर्ष की सजा का प्रावधान है  तथा साथ-साथ जुर्माने से भी दण्डित किया जा सकता है।  

 भारतीय कानून 

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