धारा 151 तथा 107/ 116 सीआरपीसी में जमानत हिंदी में

151,107/116 दंड प्रक्रिया संहिता  क्या है? 

दोस्तों, अक्सर हम सुनते आये है कि किसी व्यक्ति को 151 में बंद कर दिया है या शांति भंग में पुलिस ने किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया है। इसके साथ ही हम अपने आस पास में देखते है किसी व्यक्ति को 107-116 सीआरपीसी में छह माह तक पाबन्द कर दिया गया है तथा उनके पुरे परिवार ने SDM के न्यायालय में जमानत करवाई है। आखिर ये 151, 107/116 क्या है? जिनका पुलिस अक्सर प्रयोग करती रहती है, आज हम इन्ही के सम्बन्ध में जानेगे कि धारा 151 में गिरफ्दारी क्या है तथा 107 /116 क्या है तथा इसमें पाबंद होने पर क्या होता है  और इनमे जमानत कैसे करवाई जाती है ? उक्त की क़ानूनी व्याख्या भी करेंगे। 

धारा 151 तथा 107/ 116 सीआरपीसी में जमानत हिंदी में

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विषयसामग्री 

  1. 151 सीआरपीसी क्या है ?  
  2. 151 में जमानत कैसे करवाएं
  3. 107 /116 सीआरपीसी  क्या है ?  
  4. 107 / 116 में परिवाद कैसे करें ?   
  5. 107 /116 में जमानत  
  6. एक्ट 107 /116 में कंटेस्ट कैसे करें ? 
  7. जमानत प्रक्रिया एवं आवश्यक दस्तावेज  
  8. जमानतदार कोन हो सकेगा ?
  9. संक्षेप 

151 Cr.PC क्या है  

प्रायः हम सुनते आये हैं कि फलां व्यक्ति को पुलिस ने 151 या शांति भंग के आरोप में उठा लिया है। या कोई व्यक्ति शराब पीकर गाली-गलौच करने पर 151 में बंद कर दिया है। आखिर पुलिस के पास ये पावर आता कहाँ से है तथा उनकी इस शक्ति की क्या लिमिटेशन क्या हैं? दोस्तों, प्रायः कोई अपराध होने के पश्चात अभियुक्त को गिरफ्दार किया जाता है किन्तु ये इस प्रकार धारा है, जिसमे अन्य संज्ञेय अपराध होने की संभावना मात्र के आधार पर भी गिरफ्दारी हो जाती है। 

भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अधीन अध्याय 11 में धारा 151 में सामाजिक व्यवस्था,शांति एवं सुरक्षा बनाये रखने के साथ ही किसी संभावित संज्ञेय अपराध को होने से रोकने हेतु पुलिस तथा कार्यपालक मजिस्ट्रेट को यह पावर प्रदान किया गया है। देखा जाए तो पुलिस के पास 151 ही वह शक्ति है जिसमे वह अपने विवेक से शांति व्यवस्था बनाये रखने हेतु किसी व्यक्ति को गिरफ्दार कर सकती है। सामान्यतः इस पुलिस पावर के दुरूपयोग की बाते भी सामने आती रहती है।   

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धारा 151 Cr.PC के प्रावधान: संज्ञेय अपराध को किया जाना रोकने के लिए गिरफ्तारी-

"(1)कोई पुलिस अधिकारी, जिसे किसी संज्ञेय अपराध करने की परिकल्पना का पता है, ऐसी परिकल्पना करने वाले को मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना और वारंट के बिना उस दशा में गिरफ्तार कर सकता है जिसमे ऐसे अधिकारी को प्रतीत होता है की उस अपराध का किया जाना अन्यथा नहीं रोका जा सकता। 

(2) उपधारा(1) के अधीन गिरफ्तार किये गए किसी व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी के समय से चौबीस घंटे की अवधी से अधिक अवधी मे उस दशा के सिवाय निरुद्ध नहीं रखा जाएगा जिसमें उसका और निरुद्ध रखा जाना इस संहिता के या तत्समय पृवर्त, किसी अन्य विधि के किन्हीं अन्य उपबंध के अधीन अपेक्षित या प्राधिकृत है।"

धारा 151 उद्देश्य :

जब किसी पुलिस अधिकारी को प्रतीत होता है कि यदि किसी व्यक्ति को रोका नहीं गया तो किसी बड़े अपराध को अंजाम दे सकता है, इसी कारण बड़े अपराध की रोकथाम धारा 151 CrPC का मुख्य उद्देश्य है। यह धारा पुलिस के निवारक अनुतोष के रूप में कार्य करती है।

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 151 में जमानत के प्रावधान 

जब पुलिस किसी व्यक्ति को धारा 151 में गिरफ्दार कर लेती है तो उसके पास उसकी जमानत लेने के कोई अधिकार नहीं है। पुलिस को उक्त गिरफ्तारी का रिकॉर्ड रखना होता है। किन्तु साथ ही उक्त व्यक्ति को 24 घंटे के अवधि में न्यायालय के समक्ष पेश करना अनिवार्य है। सामान्यतः जब कोई अपराध भारतीय दंड संहिता के अधीन दंडनीय है तो संबधित व्यक्ति को पुलिस गिरफ्दार कर न्यायिक न्यायालय(JUDICIAL COURT) के समक्ष पेश करती है किन्तु जब अपराध भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता के अधीन होता है तो उक्त के सम्बन्ध में कार्यपालक मजिस्ट्रेट (ADMINISTRATIVE COURT) अथवा अन्य अधिकारी जिन्हे राज्य सरकार ने उक्त शक्ति प्रदान की है,के समक्ष पेश किया जाता है। उदाहरणार्थ जयपुर, राजस्थान में उक्त अधिकार एवं शक्तियां sdm  के पास न होकर पुलिस कमिश्नर को प्रदान की गई है। 

क्या जमानत देना अनिवार्य है ?

यदि कोई व्यक्ति धरा 151 में पुलिस हिरासत में लिया गया है और 24 घंटे की अवधी में कार्यपालक मजिस्ट्रेट (SDM) के समक्ष पेश किया जाता है तो वह उसकी जमानत को मना कर सकता है। गिरफ्दार व्यक्ति अधिकार के रूप में जमानत नहीं मांग सकता है। इसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति के पास जमानती उपलब्ध नहीं है तो उसे जमानत से मना किया जा सकता है और उसे न्यायिक हिरासत में भेजा जा सकता है। किन्तु साथ ही कार्यपालक मजिस्ट्रेट मात्र अंडरटेकिंग या व्यक्तिगत बांड के आधार पर भी आरोपी को जमानत प्रदान कर सकता है। यह कार्यपालक मजिस्ट्रेट का विवेकाधिकार होता है। 

सम्पूर्ण सीआरपीसी के प्रावधान निम्नानुसार है :-

Cr.PC  BARE ACT HINDI PDF DOWNLAD हेतु निम्न  लिंक पर क्लिक करे :-

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EPF ACT रजिस्ट्रेशन, रिफंड तथा नियम

107/116 सीआरपीसी क्या है ? 

सीआरपीसी की धारा 107/116 भी शांति व्यवस्था बनाये रखने के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण धाराएं है। जब कभी व्यक्तियों की शिकायत पर या अन्यथा पुलिस को प्रतीत होता है कि रोका नहीं गया तो बड़ा अपराध होना अवश्यम्भावी है तो उक्त धाराओं में प्रदत शक्ति के अधीन पुलिस दोनों पक्षों को पाबंद कर सकती है और न्यायालय के समक्ष जमानत लेने को कह सकती है। उक्त धाराओं में पुलिस कार्यपालक मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रकरण प्रस्तुत करता है। 

इसके अतरिक्त यदि कार्यपालक मजिस्ट्रेट को शांति व्यवस्था भंग होने की आशंका होती है तो संबधित व्यक्तियों से शांति हेतु प्रतिभूति (PEACE OF BOND)प्रदान का आदेश प्रदान कर सकता है। 

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भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता 1873 की धारा धारा 107 के प्रावधान

"107-अन्य दशा में परिशन्ति कायम रखने के लिए प्रतिभूति-(1)जब किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट को इत्तिला मिलती है कि सम्भाव्य है कि कोई व्यक्ति परिशन्ति भांग करेगा या लोक प्रशांति विक्षुब्ध करेगा या कोई ऐसा सदोष कार्य करेगा, जिससे परिशन्ति भंग हो जावेगी या लोक प्रशांति विक्षुब्ध हो जाएगी तब यदि उसकी रे में कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त  आधार है तो वह, ऐसे व्यक्ति से इसमें इसके पश्चात उपबंधित रीती से अपेक्षा कर सकेगा की वह कारन दर्शित करे कि उसे एक वर्ष से अनधिक इतनी अवधी के लिए, जितनी मजिस्ट्रेट नियत करना उचित समझे,परिशन्ति कायम रखने के लिए  प्रतिभूतियों सहित या रहित बंधपत्र निष्पादित करने का आदेश क्यों नहीं दिया जावे।   

(2)इस धारा के अधीन कार्यवाही किसी कार्यपालक मजिस्ट्रर के समक्ष तब की जा सकती है जस या तो वह स्थान जहाँ परिशन्ति भंग या विक्षुब्ध की आशंका है, उसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर है या ऐसी अधिकारिता के अंदर कोई ऐसा व्यक्ति है, जो ऐसे अधिकारिता के परे परिशन्ति भंग करेगा या लोक प्रशांति विक्षुब्ध करेगा या यथापूर्वक ऐसा कोई सदोष कार्य करेगा।"

धारा 116 के अंतरगर्त ऐसे किसी आदेश के अधीन उपस्थित व्यक्ति या लाये गये व्यक्ति की जाँच करने, उक्त कार्यवाही के आधार पर कार्य करने , समय देने, उचित उपाय करें तथा सदाचार के लिए प्रतिभूति प्रदान करने की शक्तिया प्रदान की गई हैं। 

107/116 सीआरपीसी में परिवाद   

यदि किसी व्यक्ति को प्रतीत होता है कि किसी व्यक्ति के कार्यों से शांति व्यवस्था भंग होने का खतरा है, तो वह कार्यपालक मजिस्ट्रेट के समक्ष परिवाद प्रस्तुत कर सकता है। परिवाद की सुनवाई के पश्चात कार्यपालक मजिस्ट्रेट पुलिस को जाँच कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश प्रदान करेगा तथा पुलिस जाँच के आधार पर संबंधित व्यक्तियों को सदाचार एवं शांति के लिए बंद पत्र निष्पादित करने का आदेश प्रदान करेगा। 

उक्त परिवाद किसी व्यक्ति को परेशान करने का जरिया बन चुके है। क्योकि हमारे समाज में किसी का कोर्ट के समक्ष पेश होकर जमानत लेना सामाजिक दृष्टि से बहुत बड़ी बात मानी जाती है,विशेषकर जब परिवार की बेटियाँ, बहुएं या अन्य स्त्रीयाँ हों।  उक्त परिवाद का उद्देश्य प्रायः शांति बनाये रखने का ना होकर विरोधी पक्ष को न्यायालय में पेश होकर जमानत प्रस्तुत करवाकर परेशान करने का होता है। 

प्रायः उक्त धाराओं के अंतगर्त परिवाद के जवाब में दूसरे पक्ष द्वारा भी इसी प्रकार इस्तगाशा या परिवाद प्रस्तुत किया जाता है और दूसरे पक्ष को सदाचार एवं शांति हेतु प्रतिभूति (जमानत) हेतु न्यायालय में प्रस्तुत कर परेशान किया जाता है। 

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107/116 सीआरपीसी में जमानत के प्रावधान 

कार्यपालक मजिस्ट्रेट आरोपियों को शांति एवं व्यवस्था के लिए प्रतिभूति (Bond of Peace) प्रदान करने के आदेश प्रदान करता है। उक्त धाराओं में प्रकरण पूर्णतः जमानतीय है। प्रतिभूति या शांति व्यवस्था हेतु जमानत प्रदान करते समय छह माह तक आरोपियों को पाबंद कर सकता है। यह अवधी अधिकतम एक वर्ष तक हो सकती है। उक्त प्रकरण प्रतिभूति अथवा जमानत प्रदान करते ही समाप्त हो जाता है। संबधित व्यक्ति उक्त अवधि में किसी प्रकार की शांति व्यवस्था भंग करने हेतु पाबंद होता है। 

107/116 सीआरपीसी में विरोध  करना 

107/116 में आरोपी व्यक्ति जमानत बांड नहीं भरना चाहता है तो वह उस का विरोध कर सकता है। कार्यपालक मजिस्ट्रेट को बता सकता है कि उसको बंध पत्र भरने की आवश्यकता नहीं है क्योकि ऐसा आरोप सही नहीं है। उक्त पैरवी स्वयं अथवा वकील के माध्यम से की जा सकती है। 

107/116 सीआरपीसी में जमानत की प्रक्रिया एवं दस्तावेज  

चूँकि यह पूर्णतः जमानतीय होता है तथा इसमें कार्यपालक मजिस्ट्रेट द्वारा बंधपत्र का आदेश दिया जाता है। बंधपत्र पत्र निष्पादन के साथ ही उक्त प्रकरण समाप्तप्राय हो जाता है। किन्तु संबधित व्यक्ति 6 से 12 माह की अवधी तक शांति बनाये रखने हेतु पाबंद रहता है क्योकि उसने सदाचार एवं शांति हेतु बंधपत्र(सामान्य भाषा में जमानत) कार्यपालक मजिस्ट्रेट को निष्पादित किया है। 
जमानत हेतु आवश्यक दस्तावेज 
  • वकालतनामा। 
  • जमानती के दस्तावेज जैसे कि आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस आदि।
  • जमानत हेतु वाहन की आर सी या भूमि आदि किसी प्रकार की सम्पति के दस्तावेज। 
  • बंधपत्र निर्धारित प्रारूप में।   

जमानतदार कोन हो सकता है ?

सामान्यतः  वयस्क स्वस्थचित्त व्यक्ति जमानत दे सकता है। किन्तु  उसकी हैसियत अर्थात जमानत में दी गई संपत्ति का मूल्य जमानत बंधपत्र में वर्णित राशि से अधिक होनी चाहिए।  सामान्य भाषा में हम कह सकते है कि जमानती के द्वारा जिस सम्पति की जमानत दी जाती है,वह बंधपत्र की राशि से अधिक होनी चाहिए। प्रायः एक व्यक्ति द्वारा एक ही जमानत स्वीकार की जाती है।  किन्तु नियमानुसार हैसियत के अनुसार एक व्यक्ति कई व्यक्तियों की जमानत दे सकता है।  एक व्यक्ति यदि विभिन्न प्रकरणों में जमानत देता है तो न्यायालय उसे अस्वीकार कर सकता है। 

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संक्षेप 

समय समय पर 151 तथा 107-116 सीआरपीसी के दुरूपयोग के संबंध समाचार पत्रों एवं अपने इर्द-गिर्द से सूचनाएं आती रहती है हालांकि पुलिस विभाग का कहना है कि हमारे पास और के रूप में मात्र 151 है जिसके माध्यम से हम तुरंत शांति को पूर्ण कर सकते हैं किंतु कई बार निर्दोष व्यक्ति भी धारा 151 के अंतर्गत विरुद्ध कर दिया जाता है एवं अनावश्यक रूप से 24 घंटे के लिए पुलिस हिरासत में रहता है जो उसकी सामाजिक सम्मान की दृष्टि से गलत सिद्ध होता है इसके अलावा अन्य स्थानों के श्रमिक आदि यदि धारा 151 के अंतर्गत नियुक्त किए जाते हैं और उनकी जमानत की व्यवस्था नहीं हो पाती है तो उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया जाता है जोकि उनके लिए एक प्रकार का अन्याय ही होता है धारा 107 तथा 116 में भी विभिन्न व्यक्ति न्यायिक प्रक्रियाओं का दुरुपयोग करते हैं एवं पास पड़ोसी को परेशान करने के हथियार के रूप में इनका प्रयोग किया जाता है इस के संदर्भ में विभिन्न उच्च न्यायालयों तथा उच्चतम न्यायालय के कई निर्णय है

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किंतु परंतु यह भी कहा जा सकता है कि पुलिस अधिकारियों के पास मात्र 151 धारा के अंतर्गत पावर दिया है, जिसके माध्यम से वह शांति व्यवस्था बनाए रखते हैं एवं भावी अपराध को घटित होने से रोकते हैं। विभिन्न पति-पत्नी के झगड़े, संपत्ति से संबंधित विवाद, खेत की सीमा से संबंधित विभाग एवं पास-पड़ोसियों के झगड़े आदि रोकने के संबंध में धारा 151 अत्यंत कारगर सिद्ध हुई है। 

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