बुलडोज़र पावर का सच /घर तोड़ने की राज्य सरकारों की शक्तियां

बुलडोज़र पावर का सच /घर तोड़ने की राज्य सरकारों की शक्तियां 

दोस्तों, आजकल आये दिन किसी  घर या निर्माण पर प्रशासन द्वारा बुलडोज़र चलाये जाने की घटनाएं लगातार हो रही हैं, जैसे कि कभी उत्तरप्रदेश में अपराधियों के घरों पर बुलडोज़र चला कर धवस्त किया गया है या फलां अभीनेत्री या अभिनेता या नेता के घर पर मुंबई महानगरपालिका द्वारा तोड़ फोड़ की गई है। कभी दंगाइयों या कभी अन्य व्यक्तियों के घर धवस्त किये गए है। जैसे दिल्ली के जहांगीरपुरी में हाल ही में बुलडोज़र चलाया गया है। कभी समाचार पत्रों आदि में पढ़ते हैं कि अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद की फलां सम्पति पर बुलडोज़र चलाकर ध्वस्त किया गया है।  अब हमारे मन में यह प्रश्न अवश्य आता है कि आखिर ऐसा कोनसा कानून है, जिसके तहत त्वरित न्याय प्रदान किया गया है या कही सरकार की अवैध कार्यवाही तो नहीं है, जिसे सुप्रीम कोर्ट आदि में चैलेंज भी कई बार किया है।  क्या उत्तरप्रदेश या दिल्ली की तरह हमारे राज्य भी इस प्रकार की कार्यवाही कर त्वरित न्याय प्रदान कर सकते है ? क्या राजस्थान या हरियाणा में भी ऐसी कार्यवाही संभव है तथा ऐसी कोनसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा ऐसा संभव है ? आखिर ये बुलडोज़र एक्शन क्या है ?

चलिए संभावित अधिनियमों के तहत उक्त की पड़ताल करते है कि क्या पुलिस द्वारा स्वयं इस प्रकार की कोई शक्ति किसी  अधिनियम या राज्य सरकार ने प्रदान की है या इस पावर का सच कुछ ऒर है। 

घर तोड़ने की राज्य सरकारों की शक्तियां

विषयसामग्री 

  1. गृह धवस्त तथा भारतीय प्रक्रिया संहिता के प्रावधान 
  2.  गैंगस्टर एक्ट में घर तोड़ने के प्रावधान  
  3. सशत्र बलों  द्वारा घर को उड़ाया जाना   
  4. क्षतिग्रस्त सम्पति को गिराया जाना   
  5.  विभिन राज्य सरकारों के गृह ध्वस्त के नियमों का वास्तविक आधार   
  6.  सुप्रीम कोर्ट के मुख्य केस निर्णय  
  7. सारांशतः   


 गृह धवस्त तथा  भारतीय प्रक्रिया संहिता के प्रावधान 

भारतीय प्रक्रिया संहिता के अंतगर्त इस प्रकार का कोई प्रावधान नहीं है  जो पुलिस को शक्ति प्रदान करे कि किसी अपराधी का गृह ध्वस्त करे।  पुलिस केवल न्यायालय के आदेश से ही ऐसा कर सकती है स्वेछा से नहीं।  पुलिस केवल न्यायालय के या सक्षम अधिकारी के आदेश पर इस प्रकार का कार्य कर सकती है जैसे की प्राधिकरण ने उक्त आदेश पारित किया है तो उक्त आदेश की अनुपालना सुनिश्चित करने में सहायता करने हेतु बाध्य होती है। किन्तु भारतीय प्रक्रिया संहिता की धारा 47 में प्रावधान है कि यदि किसी पुलिस अधिकारी के पर्याप्त कारण है कि कोई अपराधी किसी गृह में छिपा है यदि नियमानुसार उसे वारंट के बिना या वारंट जारी होने के पश्चात गिरफ्तार करने का पर्याप्त कारण है तो उसे गिरफ्तार करने हेतु पुलिस अधिकारी उस गृह की खिड़की या द्वार आदि तोड़कर प्रवेश कर सकता है  किन्तु इस धारा में भी गृह को धवस्त करने की कोई बात नहीं की गई है। 

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अपराधी हेतु  कुर्की के आदेश हेतु क़ानून 

भा. प्र.स. की धारा 83 के अनुसार  में केवल किसी अपराधी की सम्पति को कुर्क, विक्रय आदि करने के प्रावधान किये गए हैं। यदि कोई अपराधी भगोड़े  घोषित किया गया है तो कानूनन न्यायालय के आदेश से उसकी सम्पति कुर्क की जा सकती है एवं विक्रय भी की जा सकती है।  उक्त सम्पति का उपयोग न्यायालय के आदेशानुसार पीड़ित व्यक्ति को प्रतिकर देने हेतु किया जा सकता है। 

 गैंगस्टर एक्ट में सम्पति ध्वस्त के प्रावधान 

उत्तरप्रदेश गैंगस्टर एक्ट अर्थात उत्तरप्रदेश गैंगस्टर एंड एंटी सोशल एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) एक्ट, 1986 की धारा 14 के अनुसार यदि जिला न्यायधीश की नजरों में कोई चल या अचल सम्पति किसी अपराधी के द्वारा किसी अपराध के एवज में प्राप्त की गई है तो उसे कुर्क करने का आदेश प्रदान कर सकता है। किन्तु उक्त में भी किसी भी प्रकार से सम्पति को ध्वस्त करने का प्रावधान नहीं है।  जबकि समाचार पत्रों आदि में कहा जाता है  कि उक्त अधिनियम के अनुसार सम्पति ध्वस्त की गई है। 

सशत्र बलों द्वारा घर ध्वस्त किया जाना  

सभी सशत्र बल जिनमे पुलिस या सशस्त्र सेना आदि की विशेष अभियान आदि के समय आवश्यकता पड़ने पर किसी भवन को अपराधियों या आतंकवादियों का एनकाउंटर करने के इरादे से सम्पति को नुक्सान या ध्वस्त कर सकती है, यदि उस मामले विशेष में आवश्यक हो। जैसे कि समाचार पत्रों में अक्सर पढ़ते हैं कि फलां आतंकवादी को मारने हेतु उक्त घर को बम या ग्रेनेड से उड़ा दिया गया। किन्तु उक्त गृह ध्वस्त करने का मुख्य उद्देश्य अपराधियों या आतंकवादियों का सफाया करना होता है, न कि गृह को ध्वस्त करना। 

इस पर भी यदि किसी मामले में उक्त अभियान में किसी व्यक्ति का मकान ध्वस्त हो गया है तो यदि वह उन अपराधियों या आतकवादियों से किसी प्रकार से संबधित नहीं है तो सरकार से प्रतिकर का दावा कर सकता है। साथ ही प्रायः ऐसी घटनाएं राज्यों में अपवादस्वरूप ही होती हैं। 

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  सम्पति को सामान्य व्यक्तियों को नुक्सान पहुंचने की आशंका से ध्वस्त किया जाने के प्रावधान 

सभी प्रकार डेवलपमेंट अथॉरिटी में प्रावधान है कि यदि कोई गृह या निर्माण क्षतिग्रस्त अवस्था में है तथा  जिसके गिरने का खतरा हो और यह  जन सामान्य की आर्थिक एवं जनहानि की पूर्ण संभावना रहती है, तो सक्षम प्राधिकरण उक्त संपत्ति के मालिक को उक्त  निर्माण ध्वस्त करने का आदेश प्रदान कर सकता है। यदि वह स्वयं निर्माण को ध्वस्त नहीं करता यह  तो प्राधिकरण स्वयं उक्त निर्माण को ध्वस्त करेगा। यह नियम सभी प्राधिकरण अधिनियम में प्रदान किया गया है। जो कि जनहित में है। 

👉राजस्थान भू राजस्व (संशोधन) अधिनियम, 2022 के प्रावधान (90A सेक्शन 8 संशोधन, 2022)

अनधिकृत निर्माण नष्ट करने की विभिन राज्यों की शक्तियाँ  तथा कानून 

उत्तरप्रदेश में  उत्तरप्रदेश अर्बन प्लानिंग एंड डेवलपमेंट एक्ट, 1973 की धारा 27 (1 ) के अनुसार यदि कोई निर्माण मास्टर प्लान के विरुद्ध या बिना परमिशन के किया गया है या किया जा रहा है तो उसके ध्वस्त करने का आदेश पारित सक्षम अधिकारी द्वारा किया जा सकता है तथा आदेश से 15 से 40 दिन की अवधी में उक्त निर्माण ध्वस्त किया जाएगा। 

उत्तर प्रदेश रेगुलेशन ऑफ बिल्डिंग ऑपरेशन 1 1958 के अंतर्गत अवैध निर्माण को करने की शक्ति प्रदान की गई है जिसमें गृह स्वामी को 2 माह की अवधि तक निर्माण ध्वस्त करना होता है अन्यथा उक्त अधिनियम के अंतर्गत सक्षम प्राधिकारी उक्त निर्माण को ध्वस्त करेगा।

इसी प्रकार दिल्ली म्युनिसिपल कारपोरेशन एक्ट, 1953 की धारा 343 तथा मध्यप्रदेश भूमि विकास  रूल, 1984 रूल 12 में भी इसी प्रकार की व्यवस्था की गई है। सक्षम अधिकारी या कमिश्नर को शक्ति प्रदान की गई है कि यदि किसी प्रकार के नियमों की अवहेलना कर किसी प्रकार का अनधिकृत निर्माण किया गया है अर्थात जो निर्माण कारपोरेशन के नियमों के विपरीत अथवा बिना किसी पूर्व अनुमति या अप्रूवल किया गया है तो उक्त निर्माण के स्वामी को उक्त निर्माण ध्वस्त करने का आदेश दिया जा सकता है।  यदि वह उक्त अवधी में उक्त ध्वस्तीकरण नहीं करता है तो सक्षम अधिकारी स्वयं उक्त निर्माण को नष्ट कर सकते है। 

राजस्थान में जयपुर विकास प्राधिकरण, के जयपुर डेवलपमेंट अथॉरिटी एक्ट, 1982 की धरा 32 , 33 तथा 72 में भी  जेडीए, जयपुर अनधिकृत या अवैध निर्माण अथवा अतिक्रमण को सील कर सकता है तथा उसे ध्वस्त कर सकता है तथा उसके खिलाफ मुकदमा दायर कर सकता है। उक्त कार्यवाही में जेडीए पूर्ण रूप से पुलिस सहायता प्राप्त कर सकता है। साथ ही उक्त हेतु विधिसम्मत प्रक्रिया का पालन करना होता है जैसे कि नोटिस दिया जाना या अपील कर सकने के लिए समय दिया जाना इत्यादि।   उक्त सम्बन्ध में निम्न सर्कुलर जारी किया गया है :-

SOP FOR DEMOLITION OF UNSAFE BUILDING DOWNLOAD

Download Here

विभिन्न नगरपालिका अधिनियमों में इसी प्रकार के प्रावधान किये गए है  जो प्रत्येक राज्य में अवैध या अनधिकृत निर्माण को तोड़ने की  अनुमति प्रदान करते हैं। 

हालाँकि उक्त  अनुमति  के साथ ही कई नियम है, जिनका पालन करना अनिवार्य होता है। जैसे कि  पूर्व सूचना दिया  जाना,  बचाव के पक्ष में स्पष्टीकरण का समय दिया जाना। 

यही अधिनियम उक्त बुलडोज़र विधि के आधार है, जिनके आधार पर राज्य सरकारें  अपराधियों को चिन्हित कर उनके घरों के दस्तावेज खंगाल कर उनके द्वारा की गई  नगरपालिका आदि के अधिनियमों की अवहेलना के आधार पर कार्यवाही करती हैं। 

 90A राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 क्या है ?


सुप्रीम कोर्ट के निर्णय 

भारत के उच्चतम न्यायलय ने  भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 " प्राण एवं दैहिक स्वंतंत्रता के अधिकार " के अंतरगर्त विधि की उचित प्रक्रिया  में विधि सम्मत प्रक्रिया का ही एक हिस्सा है। ( मेनका गाँधी बनाम भारत सरकार ,2008 ) यदि यह नहीं अपनायी जाती है तो यह अनुच्छेद 21 का अतिक्रमण  होगा। 
म्युनिसिपल कारपोरेशन लुधियाना बनाम इंद्रजीत, 2008 में उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि विभिन्न नगरपालिका अधिनियमों  के अधीन कार्यवाही करने से पूर्व नोटिस का दिया जाना आवश्यक है चाहे उक्त निर्माण अवैध ही क्यों ना हो। 

वर्तमान में उक्त के सम्बन्ध में कई वाद लंबित है। 

संक्षेपतः

कुल मिलाकर हम कह सकते हैं  कि  अपराधियों के घरों  को धवस्त कर त्वरित न्याय के  पीछे  केवल राज्य सरकारों  के नगरपालिका अधिनियम  इत्यादि  ही  हैं, जिनमे  कभी बैक डेट का  नोटिस चस्पा कर कार्यवाही की जाती है तो कहीं अन्य  किसी पुराने नोटिस आदि बहाने से तुरंत कार्यवाही  की जाती है।  उक्त प्रक्रिया  के सम्बन्ध में  और  इसके प्रोसीजर के सम्बन्ध में  काफी विवाद  हैं , जो  उच्चतम  न्यायलय  में भी लंबित है। 

 कई  बार यह  दंगाइयों  तथा अपराधियों  को  सजा देने  एवं  खौफ  पैदा करने के सम्बन्ध में  सही साबित हुई है  तो  कई  बार  निर्दोष  को  अपनी  बात  कहने का  मौका तक  नहीं मिलता  और  तब तक कार्यवाही  हो चुकी  होती है।   यह  अप्रत्यक्ष  न्याय करने की राज्य सरकारों  की  नवीन  निति  बन गई  है  कई बार दुश्मनी निकालने  का  नया रास्ता  ।  यह अत्यंत विवादित बिंदु होते हुए भी यह कहा जा सकता है  कि  बिना राज्य सरकारों  की  इच्छाशक्ति  के उक्त  अधिनियमों में कार्यवाही करना संभव  नहीं है। 

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