भारत मे विवाह-विच्छेद कानुन । तलाक के नियम 2021, फॉरमेट एवं अधिनियम डाउनलोड

भारत मे विवाह - विच्छेद कानून

Divorce Law in India

भारत के हिन्दू सामाजिक परिवेश में विवाह  संस्कार माना गया है। हिंदू धर्म में संस्कारों को विशेष महत्व दिया गया है। विवाह संस्कार संपूर्ण जीवन में होने वाले 16 संस्कारों में से एक माना गया है, जो कि अटूट एवं अविखण्डनीय माना गया है। यह किसी प्रकार की संविदा नहीं है। इसमें विच्छेद का कोई भी प्रावधान नहीं किया गया है। यह जन्म जन्मांतर का संबंध माना गया है। किंतु इस्लाम धर्म में वैवाहिक विच्छेद का प्रावधान तलाक के रूप में किया गया है। इसे एक प्रकार की संविदा ( Contract) का दर्जा दिया गया है।

Divorce Acts in India
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तलाक क्या है?What is Divorce?

तलाक शब्द उर्दू भाषा का शब्द है। तलाक का हिंदी अर्थ विवाह- विच्छेद  होता है।  विवाह विच्छेद या तलाक का अंग्रेजी अर्थ  डाइवोर्स  (Divorce)  है।

तलाक की परिभाषा इस प्रकार से दे सकते हैं कि यह एक स्त्री एवं एक पुरुष, जिनका विवाह धार्मिक एवं विधिक प्रकार से संपन्न हो चुका है एवं इसके पश्चात वह उन दोनों के बीच का यह संबंध विच्छेद कर दिया जाता है इसके पश्चात वे विधिक, धार्मिक एवं सामाजिक रूप से पति एवं पत्नी नहीं रह जाते हैं। उनके आपस में वैवाहिक अधिकार एवं कर्तव्य समाप्त हो जाते हैं।

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तलाक का संक्षिप्त इतिहास : 

विभिन्न धर्मों में विवाह विच्छेद के मुद्दे पर विरोधाभास है। जहां प्राचीन हिंदू धर्म में विवाह विच्छेद का कोई प्रावधान नहीं किया गया किंतु मुगल शासन एवं अंग्रेजी शासन का प्रभाव हिन्दू व्यक्तिगत विधि पर भी पड़ा है। भारत में हिंदू धर्म की व्यक्तिगत विधि को अधिनियमित किया गया एवं इसमें विवाह विच्छेद के प्रावधान शामिल किए गए हैं। वही इस्लाम धर्म में विवाह विच्छेद  के स्पस्ट  प्रारंभ से ही मौजूद हैं क्योकि इस्लाम धर्म में विवाह अथवा निकाह को एक प्रकार की संविदा का दर्जा दिया गया है जिसमें मेहर की रकम के रूप में प्रतिफल(Consideration) की मौजूदगी होती है।

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तलाक क्यों होता है तलाक क्यों होते है, तलाक क्यों दिया जाता है?

आधुनिक काल में स्त्री एवं पुरुष दोनों को समकक्ष माना गया है कोई किसी के दबाव में नहीं होता है। सामाजिक एवं धार्मिक बंधन भी पहले से कम हो चुके हैं। सभी व्यक्तियों को जीने का अधिकार समान रूप से उपलब्ध है। यदि पति और पत्नी में किसी प्रकार के मतभेद होते हैं और मतभेद इस प्रकार के होते हैं कि जिनका समाधान नहीं किया जा सकता तो उनका प्रथक हो जाना ही उचित माना जाता है। यही कारण है कि समाज में तलाक को सामान्य रूप से लिया जाने लगा है। तलाक की विधि का अत्यंत ही विस्तार हुआ है और इसमें विभिन्न तलाक के आधारों का समावेश किया गया है।

विवाह विच्छेद पर लागू होने वाली विधि

विवाह (Marriage) व्यक्तिगत विधि (Personal Law) के अंतर्गत आता है इसलिए सभी व्यक्तियों पर विवाह विच्छेद के संबंध में उनकी व्यक्तिगत विधियां लागू होंगी, यदि इन्हें अधिनियमित नहीं किया गया है। हिंदू धर्म में व्यक्तिगत विधि विवाह के संबंध में अधिनियमित की जा चुकी है। इसीलिए उनके विवाह विच्छेद के संबंध में प्रावधान "हिंदू विवाह अधिनियम,1955" में दिए गए हैं। जबकि मुस्लिम समाज में विवाह विच्छेद/तलाक के प्रावधान उनकी व्यक्तिगत विधि "शरीयत" के अनुसार ही लागू होते हैं। विभिन्न धार्मिक प्रावधानों के अतिरिक्त प्रथागत तलाक को भी किसी हद तक कुछ शर्तों सहित मान्यता प्रदान की गई है। इसके अतिरिक्त विभिन्न धर्मों के धर्मावलंबियों के मध्य वैवाहिक संबंध विच्छेद "विशेष विवाह अधिनियम, 1954" के अंतर्गत ही होगा। इस प्रकार भारत में वैवाहिक संबंध विच्छेद हेतु अधिनियमित विधि व्यक्तिगत विधि एवं प्रथागत विधि वर्तमान में मौजूद है।

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हिन्दू धर्म मे तलाक कैसे लें ? How to apply for divorce

तलाक के प्रकार 

1. विभिन्न आधारों पर तलाक 2. सहमति से तलाक

1. विभिन्न आधारों पर तलाक

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के अंतर्गत अधिनियम की धारा 13 के अंतर्गत विभिन्न आधारों पर हिंदू विवाह विच्छेद का कारण माना गया है जिनके आधार पर तलाक लिया जा सकता है।

हिन्दू विवाह अधिनियम,1955 की धारा 13 के अनुसार तलाक के नये नियम 2021 निम्नलिखित हैं :-

" 13. तलाक -

(1) अधिनियम के प्रारंभ से पूर्व अथवा पश्चात अनुष्ठित विवाह के किसी भी पक्षकार द्वारा याचिका प्रस्तुत करने पर विवाह विच्छेद की डिक्री द्वारा विवाह विच्छेद इन आधारों पर किया जा सकता है कि दूसरा पक्ष   -

(i) विवाह के अनुष्ठापन के बाद, अपने पति या पत्नी से भिन्न  किसी अन्य  के साथ स्वैच्छिक संभोग किया है; या

(i) याचिकाकर्ता के साथ क्रूरता का व्यवहार किया है; या  ने याचिकाकर्ता को याचिका की प्रस्तुति से ठीक पहले कम से कम दो साल की निरंतर अवधि के लिए त्याग दिया है; या

(ii)  धर्म  परिवर्तन करके हिंदू नहीं रहा है; या

(iii) असाध्य विकृत चित का रहा है, या इस तरह के मनोविकार से अनवरत या अतरायिक रूप से पीड़ित रहा है और  याचिकाकर्ता से प्रतिवादी के साथ रहने की आशा नहीं की जा सकती है।

स्पष्टीकरण - इस खंड में: (ए) अभिव्यक्ति "मनोविकार" का अर्थ है मानसिक बीमारी, दिमाग का रुका हुआ या अधूरा विकास, मनोरोगी विकार या कोई अन्य विकार या मन की अक्षमता और इसमें सिज़ोफ्रेनिया शामिल है; अभिव्यक्ति "मनोरोगी विकार" का अर्थ है लगातार विकार या मन की अक्षमता (बुद्धि की उप-सामान्यता सहित या नहीं) जिसके परिणामस्वरूप दूसरे पक्ष की ओर से असामान्य रूप से आक्रामक या गंभीर रूप से गैर-जिम्मेदाराना आचरण होता है, और इसके लिए चिकित्सा उपचार की आवश्यकता होती है या नहीं; या

(iv) कुष्ठ रोग से असाध्य रूप से पीड़ित रहा हो; या

(v) एक संक्रामक यौन रोग से पीड़ित रहा है; या

(vi) किसी भी धार्मिक व्यवस्था में प्रवेश करके संसार को त्याग दिया है; या

(vii) 7 साल की अवधि से उन व्यक्तियों द्वारा जिन्हें उसके बारे में पता होता,ना तो  देखा गया है, ना ही नहीं सुना गया है।

स्पष्टीकरण - इस उप-धारा में, "परित्याग" का अर्थ है याचिकाकर्ता का दूसरे पक्ष द्वारा बिना किसी उचित कारण के और सहमति के बिना या ऐसे पक्ष की इच्छा के बिना विवाह के लिए परित्याग करना, और इसमें याचिकाकर्ता की जानबूझकर उपेक्षा शामिल है। विवाह का दूसरा पक्ष, और इसके व्याकरणिक रूपांतरों और सजातीय भावों का अर्थ तदनुसार लगाया जाएगा।

(1क) विवाह का कोई भी पक्ष, चाहे वह इस अधिनियम के प्रारंभ से पहले या बाद में अनुष्ठापित हो, इस आधार पर तलाक की डिक्री द्वारा विवाह के विघटन के लिए याचिका प्रस्तुत कर सकता है -

(i) न्यायिक पृथक्करण की डिक्री पारित होने के बाद, जिसमें वे पक्षकार थे, विवाह के पक्षकारों के बीच एक वर्ष या उससे अधिक की अवधि के लिए सहवास की बहाली नहीं हुई है; या

(ii) जिस कार्यवाही में वे पक्षकार थे, वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए एक डिक्री पारित होने के बाद एक वर्ष या उससे अधिक की अवधि के लिए विवाह के पक्षों के बीच वैवाहिक अधिकारों की कोई बहाली नहीं हुई है।

(2) पत्नी भी आधार पर तलाक की डिक्री द्वारा अपने विवाह के विघटन के लिए याचिका प्रस्तुत कर सकती है

(i) इस अधिनियम के प्रारंभ से पहले अनुष्ठापित किसी विवाह के मामले में, कि पति ने ऐसे प्रारंभ से पहले फिर से विवाह किया था या कि ऐसे प्रारंभ से पहले विवाहित पति की कोई अन्य पत्नी विवाह के अनुष्ठापन के समय जीवित थी याचिकाकर्ता:

बशर्ते कि किसी भी मामले में याचिका की प्रस्तुति के समय दूसरी पत्नी जीवित हो; या

(ii) कि पति, विवाह के अनुष्ठापन के बाद से, बलात्कार, व्यभिचार या पशुगमन दोषी रहा है; या

(iii) कि हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 (1956 का 78) की धारा 18 के तहत एक मुकदमे में, या दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 125 के तहत कार्यवाही में (या इसी के तहत दंड प्रक्रिया संहिता, 1898 (1898 का ​​5)] की धारा 488, एक डिक्री या आदेश, जैसा भी मामला हो, पत्नी को भरण-पोषण देने वाले पति के खिलाफ पारित किया गया है, भले ही वह प्रथक रह रही हो और यह कि पारित होने के बाद से इस तरह के आदेश या आदेश के अनुसार, पक्षकारों के बीच एक वर्ष या उससे अधिक के लिए सहवास फिर से प्रारम्भ नहीं किया गया है;

(iv) उसका विवाह (चाहे पूरा हो गया हो या नहीं) उसके पंद्रह वर्ष की आयु प्राप्त करने से पहले अनुष्ठापित किया गया था और उसने उस आयु को प्राप्त करने के बाद लेकिन अठारह वर्ष की आयु प्राप्त करने से पहले विवाह को अस्वीकार कर दिया था।

स्पष्टीकरण - यह खंड लागू होता है कि क्या विवाह विवाह कानून (संशोधन) अधिनियम, 1976 (1976 का 68) के प्रारंभ होने से पहले या बाद में अनुष्ठापित किया गया था।] "

हिन्दू धर्म में तलाक के लिए आवेदन

विभिन्न आधारों पर तलाक लेने हेतु संबंधित क्षेत्राधिकार वाले पारिवारिक न्यायालय में वाद प्रस्तुत करना होता है। बाद में उन समस्याओं का वर्णन होता है, जिनके आधार पर वह अप्रार्थी के साथ नहीं रह सकता है अथवा रह सकती है। उसके पश्चात संपूर्ण न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से एवं साक्ष्य आदि लेने के पश्चात न्यायालय निर्णय प्रदान करता है एवं तलाक की डिग्री प्रदान की जाती है।

तलाक हेतु फॉरमेट पीडीएफ

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2.पारस्परिक सहमति से तलाक

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 B अनुसार पारस्परिक सहमति से तलाक लिया जा सकता है। जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को यह सिद्ध करना पड़ता है कि उनके बीच की परिस्थितियां इस प्रकार की हो गई हैं कि वह एक साथ संयुक्त रूप से नहीं रह सकते हैं।

पारस्परिक सहमति से तलाक लेने की प्रक्रिया ( How to file for divorce by mutual consent)

जब हिंदू धर्मालंबियों के परस्पर सहमति से विवाह विच्छेद (Divorce by Mutual Consent) हेतु आवेदन किया जाता है तो दोनों आवेदकों को संयुक्त रूप से न्यायालय में प्रस्तुत होकर अपने उन तथ्यों सहित जिनके कारण वे दोनों संयुक्त रूप से नहीं रह सकते हैं, का उल्लेख करते हुए न्यायालय में वाद दायर किया जाता है। 

इसके पश्चात न्यायालय दोनों पक्षकारों को 6 माह का समय देता है।  उनके मध्य इसी प्रकार के समझौते की संभावना हेतु यह समय दिया जाता है। 

6 माह की अवधि की समाप्ति के पश्चात यदि दोनों प्रार्थी संयुक्त रूप से उन्हें न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत होते हैं एवं पारस्परिक सहमति से विवाह विच्छेद चाहते हैं तो न्यायालय न्यायिक प्रक्रिया को अपनाते हुए उनके उनके विवाह विच्छेद की अनुमति देता है एवं विवाह-विच्छेद की डिक्री पारित करता है। वह समस्त शर्तें भी तय करता है जैसे कि बच्चे की कस्टडी, भरण पोषण अथवा एकमुश्त भरण पोषण आदि ।

हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 पीडीएफ डाउनलोड

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विभिन्न धर्मों के मध्य हुए विवाह का विवाह विच्छेद

जहां व्यक्तियों का विवाह" विशेष विवाह अधिनियम, 1954"के अंतर्गत होता है तो उनसे संबंधित विवाह विच्छेद का प्रावधान विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के प्रावधानों के अंतर्गत ही होता है। अर्थात विभिन धर्मावलंबियों के मध्य अनुष्ठित विवाह के पक्षकारों के मध्य विवाह विच्छेद उक्त अधिनियम के दायरे में आता है।

विशेष विवाह अधिनियम, 1955 पीडीएफ डाउनलोड

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मुस्लिम विधि में तलाक के प्रावधान

मुस्लिम व्यक्तिगत विधि  तलाक की प्रक्रिया 

मुस्लिम धर्म में तलाक हेतु व्यक्तिगत विधि (Presonal Law) लागू होती है। जो क़ुरान, हदीस तथा सुन्नत के अनुसार होती है। जिनमे लिखी आयतों के आधार पर व्यक्तिगत विधि के सिदान्त लागू होते हैं।

क्या तलाक की प्रक्रिया है?

मुस्लिम व्यक्तिगत विधि में निम्न प्रकार के तलाक प्रचलित है :--

तलाक-ए-हसन- निश्चित समयंतरालों पर तीन बार तलाक कहकर तलाक देना। यह सर्वाधिक अच्छा तरीका माना गया है।तलाक तभी पूर्ण माना जाता है, जब उक्त समयंतरालों के पश्चात तीसरी बार तलाक कहकर दिया गया हो। 

तलाक-ए-बिद्दत (सामान्य नाम तीन तलाक)- एक ही बार मे तीन बार तलाक कहकर तलाक देना। 

तीन तलाक को दंडनीय अपराध घोषित कर दिया गया है। 2019 में पारित अधिनियम " मुस्लिम महिला वैवाहिक अधिकारों का सरंक्षण अधिनियम, 2019 " में इसे अवैध घोषित किया गया है। इसे सामान्य भाषा मे तीन तलाक कानून भी कहते हैं।

मुस्लिम महिला वैवाहिक अधिकारों का सरंक्षण अधिनियम, 2019 पीडीएफ डाउनलोड

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खुला द्वारा तलाक- निश्चित की गई रकम का भुगतान करके तलाक देना।

तलाक-ए-तफवीज- निकाहनामा में स्त्रियों के तलाक लेने के आधार तय करके स्त्री का उक्त शर्त के उल्लंघन पर तलाक लेना। 

मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम,1939

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मुस्लिम विधि में तलाक प्रक्रिया

ऊपर दिए गए विभिन्न विभिन्न तरीकों से तलाक दिया जा सकता है । इसमें " मैं तुम्हें तलाक देता हूं" या "तलाक" इसी आशय के अन्य शब्द तीन बार दोहरा कर तलाक दिया जा सकता है। इसमें मुवक्किल अथवा गवाह की आवश्यकता होती है। तीसरी बार तलाक दोहराने पर मुस्लिम विधिनुसार तलाक पूर्ण माना जाता है। किसी निषेधित संबंध से तुलना द्वारा भी तलाक दिया जा सकता है। इसके पश्चात तलाकनामा काजी द्वारा जारी किया जाता है।

तलाक के बाद जीवन

तलाक के बाद पत्नी के अधिकार / तलाक में पत्नी के अधिकार

भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (Cr.P.C.) की धारा 125 के अंतर्गत तलाक के पश्चात महिला भरण पोषण की अधिकारी हो जाती है, जब तक कि वह है दूसरा विवाह  नहीं करती है।

तलाक के बाद पुनर्विवाह

हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 15 के अनुसार जब तक दो व्यक्तियों के बीच तलाक की डिक्री पारित नहीं की जाती है तब तक हिन्दू व्यक्ति पुनर्विवाह नहीं कर सकता है। साथ ही अपील का अधिकार भी शेष नही रहना चाहिये या अपील भी निर्णीत हो चुकी हो। मुस्लिम धर्म मे चार शादी करने का प्रावधान है। इसलिए यदि पूर्व में चार पत्नियां विद्यमान है तो पांचवी शादी किसी एक से तलाक पूर्ण होने तक नहीं की जा सकती है। यदि किसी व्यक्ति ने तलाक पूर्ण हुए बिना विवाह कर दिया है तो वह भारतीय दंड संहिता की धारा 494 व 495 अंतर्गत दंडनीय अपराध होगा। तलाक पूर्ण होने के पश्चात सभी पक्षकारों को पुनर्विवाह करने की अनुमति प्राप्त हो जाती है। 

तलाक के बाद बच्चे का अधिकार /तलाक के बाद बच्चा किसको मिलेगा ?

एक अवयस्क बालक की संरक्षकता माता को कुछ शर्तों सहित प्रदान की जा सकती है किंतु व्यस्क होने पर बालक स्वयं सरंक्षक का चयन कर सकता है। यह हिन्दू अवयस्कता एवं सरंक्षता अधिनियम, 1956, सरंक्षक एवं सरंक्षयता अधिनियम (Guardian and Wards Act) के प्रावधानों के अनुसार होगा।

दोस्तों, विवाह एवं तलाक विस्तृत विषय है, फिर भी हमने संक्षिप्त में उक्त के बारे में जानकारी देने का प्रयत्न किया है, कोई जानकारी यदि आप चाहते हैं तो कमेन्ट के माध्यम जान सकते हैं। हमारे ब्लॉग से जुड़ने के लिए धन्यवाद।

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