गणेश चतुर्थी क्या है और क्यों मनाई जाती है ?

गणेश चतुर्थी क्या है और क्यों मनाई जाती है ?

गणेश चतुर्थी क्या है और क्यों मनाई जाती है ?


भारत में गणेश चतुर्थी प्रमुख त्योहारों में से एक है। इस दिन रिद्धि, सिद्धि, सौभाग्य एवं समृद्धि के देवता श्री गणेश जी की पूजा की जाती है। यह त्यौहार बड़े हर्षोल्लास के साथ पूरे 10 दिन तक मनाया जाता है।

गणेश चतुर्थी क्यों मनाई जाती है ?

संपूर्ण भारत वर्ष में गणेश चतुर्थी बनाने का कारण है कि इस दिन भगवान श्री गणेश जी का जन्म माना गया है। इनका जन्म भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष चतुर्थी को हुआ माना जाता है । इसीलिए इस दिन गणेश चतुर्थी का त्योहार मनाया जाता है इस दिन इनके साथ साथ इनकी दो पत्नियां ऋद्वि एवं सिद्वि की भी भगवान श्री गणेश  के साथ पूजा अर्चना की जाती है। इनको को सौभाग्य, समृद्धि और बुद्धि का देवता माना गया है। अनंत चतुर्दशी को  गणेश जी के विसर्जन के साथ त्योहार का समापन होता है।
2021 में  शुक्रवार, 10 सितंबर, 2021 को गणेश चतुर्थी मनाई जाएगी । इस दिन गणेश जी की स्थापना होगी तथा 19 सितंबर, 2021 अनंत चतुर्दशी को विसर्जित किया जाएगा ।

गणेश जी की  जन्म की कहानियां


इनके जन्म के संबंध में अनेक कहानियां प्रचलित हैं जो निम्न प्रकार से हैं : -

 1. शिव पुराण के अनुसार कथा है कि पार्वती जी कैलाश पर्वत पर स्नान कर रही थी।  भगवान शंकर कहीं गए हुए थे। कोई आगंतुक न आए इसलिए  उन्होंने अपने मेल एवं उबटन से अपनी दिव्य शक्ति से एक बालक भगवान गणेश का सृजन कर दिया और उन्हें आदेश दिया कि किसी को भी अंदर आने नहीं दिया जाए, जब तक मैं स्नान करती हूँ। कुछ समय पश्चात भगवान शंकर कैलाश पर्वत आए। उन्होंने अंदर आना चाहा तो भगवान श्री गणेश ने उन्हें अंदर जाने  से मना कर दिया। इस पर क्रोधित होकर भगवान शंकर ने अपने त्रिशूल से उस बालक गणेश का सिर धड़ से  अलग कर दिया।  कुछ समय पश्चात जब माता पार्वती आई और उसने बताया कि उसका निर्माण उन्होंने खुद ने किया है और उन्होंने उसे पुनर्जीवित करने की मांग की।  इस पर भगवान शयनकक्ष ने अपने गणों को आदेश दिया कि ऐसे किसी का सिर लेकर आओ जिसकी माता विपरीत मुँह करके स्तनपान कराती हो । ढूंढने पर उन्हें एक हथिनी मिली जो अपने बालक से विपरीत मुंह करके बैठी थी। उसका धड़  गण अलग कर भगवान शंकर के पास लेकर आ गए । भगवान शंकर ने  बालक गणेश के धड़ पर हाथी का सर जोड़  दिया और पुनर्जीवित कर दिया।  तभी से भगवान श्री गणेश का धड़ा हाथी का है। 

2. गणेश चालीसा के अनुसार पार्वती माता के कठोर तप से उन्हें एक दिव्य पुत्र गणेश जी की प्राप्ति हुई। ये अत्यंत ही तेजस्वी थे।  उनके पुत्र उत्सव किया गया। जिसमें शनी जी महाराज जी भी पधारे।  जब उनकी दृष्टि बालक पर पड़ी तो उनका सिर आसमान में उड़ गया और हाहाकार मच गया।  ऐसी स्थिति को देखते हुए गरुड़ जी को एक नया सर लाने को कहा गया तो वह जो सर लेकर आये वह हाथी का था। उसी को उनके धड़ पर स्थापित कर पुनर्जीवित किया गया। इसलिए ही विघ्नहर्ता गणेश जी का सिर हाथी का तथा देह मानव की है।

3. वराहपुराण के अनुसार एक अन्य प्रचलित कथा केके अनुसार भगवान श्री गणेश को भगवान शंकर ने रचित किया था जो अत्यंत ही तेजस्वी एवं  बुद्धिमान थे। उनको देखकर देवता अत्यंत ईर्ष्यालु हो रहे थे।  उनके दुख को जानकर भगवान शंकर ने उनका पेट मोटा कर दिया और सिर्फ पर हाथी का सर लगा दिया था। 

4. एक अन्य प्रचलित कथा के अनुसार जिसका वर्णन पुराण में मिलता है ।भगवान गणेश का जन्म अबुर्द पर्वत( अर्बुदारण्य पर्वत ) अर्थात माउंट आबू पर हुआ था। इसलिए इसी छोटी काशी के नाम से भी जाना जाता है। इनके जन्म पर उक्त पर्वत की देवताओं ने परिक्रमा की थी। इसलिये वहाँ स्थित गणेश जी के मंदिर में गोबर के गणेश जी स्थापित कर पर्वत की परिक्रमा की जाती है।

गणेश जी की वंशावाली

गणेश जी के माता का नाम पार्वती तथा पिता का नाम शंकर भगवान था। इनके भाई कार्तिकेय थे। इनके  दो पत्नियां थी जिनका नाम रिद्धि एवं  सिद्धि था । ये दोनों भगवान विश्वकर्मा की पुत्रिया थी।  इनके 2 पुत्र थे जिनके नाम  शुभ( क्षेम) एवं  लाभ था। गणेश जी के एक पुत्री थी जिनका नाम माता संतोषी था। शुभ एवं लाभ की पत्नियां तुष्टि एवं पुष्टि थी एवं आमोद एवं प्रमोद गणेश जी के पुत्र थे। गणेश परिवार की सामूहिक पूजा की जाती है। हमारे यहां शुभ कार्यों में जो स्वस्तिक का निशान बनाया  जाता है उनकी दोनो लाइन गनेश जी की पत्नियां ऋद्वि एवं सिद्धि की प्रतीक है तथा  शुभ एवं  लाभ स्वस्तिक के दोनों और लिखा जाता है वह गणेश जी के पुत्रों के प्रतीक हैं।

गणेश जी को प्रथम पूजनीय क्यों माना जाता है ?


भगवान श्री गणेश को सर्वप्रथम याद किया जाता है तथा भगवान श्री शंकर के पुत्र होते हुए भी इनको उनसे भी पहले याद किया जाता है।  इनके बिना कोई भी शुभ कार्य संपन्न नहीं किए जाते हैं। इसके पीछे कहानी है कि कहा जाता है एक बार देवताओं में यह शर्त लगी कि कौन ब्रमांड के पहले 7 चक्कर काटता है । वही देवताओं में सर्वश्रेष्ठ होगा।भगवान श्री गणेश का वाहन मुशक या चूहा है।  है जो कि बहुत धीरे चलता है जबकि भगवान कार्तिकेय का वाहन गरुड़ था जो  जो काफी ऊंची उड़ान तुरंत ही कर लेता था। उनकी इस शर्त पर सभी देवताओं ने अपने-अपने वाहनों से ब्रह्मांड के चक्कर लगाना प्रारंभ कर दिया। किंतु भगवान गणेश वहीं खड़े रहे और उन्होंने अपने माता-पिता शंकर भगवान और पार्वती जी के 7 चक्कर लगाते हुए और कहा कि मैंने पूरे ब्रह्मंड के 7 चक्कर  पूर्ण कर लिए हैं। इस पर देवता अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने उनकी बुद्धिमत्ता को देखते हुए वरदान दिया कि सभी शुभ कार्यों से पूर्व आपकी ही सर्वप्रथम पूजा की जाएगी।

ऐतिहासिक एवं स्वतंत्रता काल मे गणेशोत्सव का महत्व

शिवाजी महाराज ने गणेशोत्सव को को सार्वजनिक समारोह को घोषित किया था। बाल गंगाधर तिलक में सांप्रदायिक जातिगत सद्भावना बनाने हेतु उसको सामाजिक स्तर विशाल उत्सव के रूप में पर मनाना प्रारंभ करने हेतु प्रेरित किया। जिसमें सभी लोग एकत्रित होते थे और स्वतंत्रता हेतु यह अत्यंत आवश्यक था कि लोग आपस मव जुड़े।  इस समारोह को महाराष्ट्र मे  अत्यंत भव्य एवं विशाल तरीके से बनाया जाता है। बाल गंगाधर तिलक की यह सोच स्वतंत्रता आंदोलन को हवा देने के लिए महत्वपूर्ण कदम था।

गणेश जी के 108 नाम


1. बालगणपति  2. भालचन्द्र  3. बुद्धिनाथ 
4. धूम्रवर्ण         5. एकाक्षर।  6. एकदन्त
7. गजकर्ण       8. गजानन।   9. गजवक्र
10. गजवक्त्र    11. गणाध्यक्ष 12. गणपति 
13. गौरीसुत     14. लम्बकर्ण   15. लम्बोदर
16. महाबल     17. महागणपति 18. महेश्वर
19. मंगलमूर्ति  20. मूषकवाहन 21. निदीश्वरम
22. प्रथमेश्वर   23. शूपकर्ण      24. शुभम 
25. सिद्धिदाता 26. सिद्दिविनायक 27. सुरेश्वरम
28. वक्रतुण्ड।   29. अखूरथ    30. अलम्पता
31. अमित    32. अनन्तचिदरुपम33. अवनीश 
34. अविघ्न।   35. भीम।      36. भूपति
37. भुवनपति  38. बुद्धिप्रिय  39. बुद्धिविधाता 
40. चतुर्भुज   41. देवादेव  42. देवांतकनाशकारी
43. देवव्रत   44. देवेन्द्राशिक  45. धार्मिक 
46. दूर्जा      47. द्वैमातुर     48. एकदंष्ट्र
49. ईशानपुत्र  50. गदाधर   51. गणाध्यक्षिण 
52. गुणिन   53. हरिद्र    54. हेरम्ब
55. कपिल   56. कवीश   57. कीर्ति 
58. कृपाकर  59. कृष्णपिंगाश 60. क्षेमंकरी
61. क्षिप्रा।     62. मनोमय।    63. मृत्युंजय
64. मूढ़ाकरम 65. मुक्तिदायी  66. नादप्रतिष्ठित
67. नमस्थेतु  68. नन्दन    69. सिद्धांथ
70. पीताम्बर 71. प्रमोद   
72. पुरुष 
73. रक्त  74. रुद्रप्रिय 75. सर्वदेवात्मन 
76) सर्वसिद्धांत  77. सर्वात्मन  78. ओमकार
79. शशिवर्णम 80. शुभगुणकानन 81. श्वेता 
82. सिद्धिप्रिय  83. स्कन्दपूर्वज 84. सुमुख 
85. स्वरूप 86. तरुण 87. उद्दण्ड 
88. उमापुत्र 89. वरगणपति 90. वरप्रद 
91. वरदविनायक92. वीरगणपति 93. विद्यावारिधि
94. विघ्नहर 95. विघ्नहत्र्ता  96. विघ्नविनाशन 
97. विघ्नराज 98. विघ्नराजेन्द्र 99. विघ्नविनाशाय
100. विघ्नेश्वर 101. विकट  102. विनायक 
103. विश्वमुख 104. विश्वराजा 105. यज्ञकाय 
106. यशस्कर 107. यशस्विन 108.  योगाधिप 

इन सभी नाम माला के 108 माला के मनको या 108 ब्रह्माण्ड के भी प्रतीक हैं।

गणेश जी के मंत्र

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